रा.रा.क्षे.में सामाजिक अवसंरचना
सामाजिक अवसंरचना को योजना में एक विकास-वर्द्धक तथा संपोषितय मार्ग के रूप में पहचाना गया है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सामाजिक अवसंरचना का प्रभाव उसकी निमनलिख्ति की ओर में योगदान की क्षमता पर निर्भर करेगा:
- नगरों की जनसंख्या को समावेशित करने की क्षमता।
- जीवन स्तर की गुणवत्ता में सुधार।
- आत्म-निर्भता और शहर की संपोषिता को ऊपर उठाना।
- निवासियों में परायापन की भावना को कम करते हुए रहने योग्य तथा संपूर्ण शहरी बस्तियों का निर्माण करना जहां पर कमजोर वर्गों (निर्धन, महिला, बच्चें, विकलांग इत्यादि व अन्यों को) सामाजिक व आर्थिक लाभ को मिले, ताकि मूलभूत अवसंरचनाओं के लिए बस्तियों पर कम निर्भता हो।
- नगरों से जुड़़े होने की भावना को प्रात्साहित करना, जो कि सामाजिक अवसंरचनाओं के अपर्याप्त प्रावधानों तथा उन्न्यन न होने के कारण क्षीण है।
ऐसे कुछ घटकों पर ध्यान देने की ज़रूरत है जो कि रा.रा.क्षे. के विकास प्रक्रिया को बढ़ाने में उल्लेखनीय रूप से बहुस्तरीय प्रभाव कर सकने की संभावना रखते हैं। सामाजिक अवसंरचना जो नगरों की जनसंख्या को कारगर रूप से समावेशित करने की क्षमता के विकास में प्रभावी योग दे सकते हैं, स्वास्थ्य तथा शिक्षा अवसंरचना के परंमपरागत घटकों के अलावा मनोरंजन सुविधाओं तथा खुले स्थानों, कारगर संक्रियात्मक सार्वजानिक वितरण कार्यक्रम (पी.डी.एस.) अपराध प्रबंधन संरचना तथा वरिष्ठ नागरिक गृह भी शामिल है।
क्षेत्रीय स्तर की सुविधाओं के निर्धारण के लिए मांग पक्ष के पहलू को पर्याप्त महत्व देकर एक मानकीय दृष्टिकोण अपनाने की स्पष्टता जरूरत है। तदानुसार, स्वेच्छिकता से कीमत अदा करना के सिद्धांत को मिला कर, बहु-चरणीय मानकों तथा मानदंडों पर विचार किया जाना चाहिए, जिसमें सम्पन्न क्षेत्रों के मानक सामन्य मानकों से अलग हों। इस संबंध में शहरी विकास और गरीबी उपशमन मंत्रालय की शहरी विकास योजना प्रतिपादन तथा कार्यान्वयन दिशा-निर्देश बाक्स 12.1 में दिए गए है।
साम्या सिद्धांत में आवश्यकता है कि निर्धनों की जरूरत को अपेक्षित नहीं किया जाए और लचीले मानकों का उद्देश्य विशिष्ट सामाजिक अवसंरचना को विकसित करने के लिए संसाधनों को सृजित करने का होना चाहिए तथा यादि आवश्यक हो तो, सरकारी राजकोष के बाहर से किसी एक पारगामी इमदाद गतिविधि का वित्त प्रबंध करना चाहिए।
मूल सामाजिक अवसंरचना घटकों के लिए दिल्ली अथवा राष्ट्रीय मानदंड़ों, जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के छोटे नगरों के लिए असमर्थ और अप्रासांगिक होंगें, के स्थान पर क्षेत्रीय अथवा राज्यसीय के मानदंड विकसित किए जाने चाहिए।
शिक्षा
जनगणना 2001 के अनुसार क्षेत्र मे साक्षरता दर (72.97%) अखिल भारतीय दर (65/38%) से अधिक है। उप-क्षेत्रों की आपस में तुलना करने पर एन.सी.टी.- दिल्ली (81.82%) की साक्षरता दर सर्वाधिक है तद् पश्चात् उप-क्षेत्र हरियाणा (70.84%),उत्तर प्रदेश (66.29%) तथा राजस्थान (62.48%) दर है।
मुद्दे
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में, दिल्ली ,मातृ नगरी, में लगभग सभी प्रकार की ओर संभवत:देश की सर्वोतम उच्चतर शैक्षिक तथा अनुसंधान सुविधाएं उपलब्ध हैं। उप-क्षेत्रीय स्तर की शैक्षणिक सुविधाएं जैसे कालेजों, व्यावसायिक संस्थनों अथवा विश्वविद्यालय परिसरों की आवश्यकता है जो कि बड़ी मात्रा में छात्रों की मांग को पूरा कर सके। उत्तर प्रदेश उप-क्षेत्र में एक विश्वविद्यालय मेरठ में और हरियाणा उप-क्षेत्र में भी, रोहतक में, राजस्थान उप-क्षेत्र में कोई विशवविद्यालय नहीं है। तथापि, उच्चतर तथा तकनीकी शिक्षा से सम्बद्ध कॉलेजों की संख्या पर्याप्त है और उनमें बढ़ोतरी भी रही है। केन्द्रीय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तथा कुछ क्षेत्रीय केन्द्रों में अच्छी कोटि की शैक्षाणिक सुविधाएं उपलब्ध कराने में निजी क्षेत्र को सम्मिलित करने के प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। इन सुविधाओं का उपयोग लागत और निकटता का ध्यान में रखते हुए दिल्ली के लोगों दवारा भी उपयोगि किया जा रहा है।
सामान्य धारणा यह है कि दिल्ली से बाहर उच्चतर तथा तकनीकी शिक्षा का स्तर कम से कम तुलनात्मक दायरे में दरअसल खराब है। तथापि, कुछ अन्य घटक भी है जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता अथवा नहीं किया जाना चाहिए जिसमें पत्रिकाओं, पर्यटकों,छात्रों, सम्मेलनों, संगोष्ठियों आदि सहित रूप में अंतर्राष्ट्रीय अनुभव की उपलब्धता होना जो केवल दिल्ली में ही उपलब्ध हैं।
क्षेत्र की अनसांधन व विकास येत्र लगभग समूचित रूप से दिल्ली में संकेन्द्रीत है, हालांकि दोनों विश्वविद्यालयों में बहुत सारे अनुसंधान छात्र और अनुसंधानि शिक्षावृर्तियां हैं। अनुसंधान व विकास उप-प्रणाली से भी नई जानकारी उत्पन्न् होती है जो कि विशेष कर स्नातकोतर शिक्षा तथा अनुसंधान के लिए प्रासंगिक है, जिसके लिए दिल्ली उपयुक्त रूप से प्रख्यात है।
स्वास्थ्य मुद्दे
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी और भारत का तीसरा बड़ा नगर होने के नाते, बड़ी संख्या में चिकित्सीय संस्थानों का लाभ प्राप्त है जिनमें देश में उपलब्ध लगभग सभी क्षेत्रों की सर्वोच्य विशेषज्ञता है (बाक्स 12.3)। हालांकि रोहतक और मेरठ में सरकारी चिकित्सा कॉलेज हैं फिर भी क्षेत्र में समानार्थक चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। चिकित्सा कॉलेजों के साथ लगे हुए शैय्याओं की संख्या ज़्यादा नहीं है़ और प्रामर्शी की संख्या भी वास्तव में कम है।
क्षेत्र में किसी भी जगह उत्कृष्ट विशिष्टता प्राप्त प्रशिक्षण तथा चिकित्सा मुश्किल से ही उपलब्ध है, जिसके परिणामस्वरूप दु:साध्य मरीजों को 100-200 किलों मीटर की दूरी से भी दिल्ली के परामर्शी अस्पतालों में साधारणत: ले जाते है। यह स्पष्ट है ऐसा करना न तो मरीज़ों के लिए अच्छा है और न ही दिल्ली कि लिए जिसकी भौतिक अवसंरचना नामत: परिवहन तथा विद्युत पर जाटिल और गंभीर मरीज़ों के इस प्रकार आने से अतिरिक्त दवाब पड़ता है। चूंकि दिल्ली में बहुत सी सुविधाएं अखिल भारतीय स्तर के लिए जो कि केवल दिल्लीवासियों के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण देश के लिए है।
कार्यनीतियां शिक्षा तथा स्वास्थ्य
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• सुविधाओं के मानदण्ड़ों में असमानताओं और क्षेत्राधिकार से उठने वाली समस्याओं से बचने के लिए सामाजिक अवसंरचनों के विकास में समग्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए एकीकृत दृषिटकोण अपनाने की जरूरत है।
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• इस समस्या का समाधान दिल्ली से बाहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित नगरों में अच्छी कोटि की शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं के लिए व्यवस्था करना है। आसपास के क्षेत्रों में यदि अच्छे संस्थान स्थापित कर दिए जाएं तो, लोग निश्चय ही दिल्ली से बाहर जाना चाहेंगे, इस प्रकार दिल्ली की भीड़भाड़ कम करने में सहायता मिलेगी।
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• दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एकीकृत आर्युविज्ञान और औषधि की देशी प्रणालियों की लोकप्रियता को देखते हुए संस्कृति आधारित स्वास्थ सुविधाएँ जैसे आयुर्वेदिक, युनानी, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी, योग तथा ध्यान को सुदृढ़ और संवर्धन चाहिए जिससे कम लागत और स्थानीय सुलभता से स्वास्थ्य सुविधाऍे उपलब्ध करायी जा सके। यह भी आवश्यक है कि क्षेत्रीय केन्द्रों और केन्द्रीय रा.रा.क्षे. के नगरों तथा उनके ग्रामीण आंचलों में प्रत्येक देशी प्रणाली की एक या दो विशिष्ट केन्द्रों के लिए उपयुक्त स्थल चुने जाए और उन्हें क्षेत्रीय योजना-2021 के दौरान विकसित किया जाए।
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• सामाजिक क्षेत्र में सुधार अभी प्रारंभ में ही है और इसलिए किसी तरह का मूल्यांकन इस चरण पर बिल्कुल वास्तिवक नहीं होगा। पूरे विश्व में एक आम राय यह है कि इस समायोजन में मानवीय मूल्यों का ध्यान होना चाहिए, जिसको सामाजिक सेवाओं, विशेषकर आधारभूत जरूरते के प्रबंधन संबंधित , को समायोजन प्रिकिया के दौरान सुरक्षित किया जाना चाहिए। इस संदभ्र में, वस्तुत आर्थिेक सुधार प्रकिया के सहगामी के रूप में शिक्षा में निवेश वृद्धि भी वास्तव में एक ठोस उदाहरण है। सरकारी व्यय की पुन: निर्दिष्ट कर शिक्षा की और शिक्षा के अंतर्गत, गरीबी के लिए ,मूल शिक्षा,दक्षता विकास, तकनीकी तथा प्रबंधन शिक्षा में होना चाहिए।
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• अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थानों ने भी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं को एक महतवपूर्ण निवेश मानते है और अर्न्तराष्ट्रीय वातारण को प्रोत्साहित करते हैं जिससे देशों का समर्थ, अपने सामाजिक-आर्थिक विकास को संपोषित बना सके। शैक्षणिक और चिकित्सा क्षेत्र में बाह्य निवेश भी एक समाधान हो सकता है जिससे प्रणाली की परिचालन क्षमता को वर्तमान स्तर पर बनाए रखा जा सके।
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• दूररथ शिक्षा पद्धति को शिक्षा प्रसार के एक रीति जरिए के रूप में मान्यता दी गई है। यह पहले सी ही प्रचालित है, विशेषकर उच्च विद्यालय और विशवविद्यालय स्तर पर राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय, अनेक विशवविद्यालयों से अनुरक्त पत्राचार पाठयक्रम, राष्ट्रीय तथा कुछ राज्य स्तरों पर मुक्त विष्वविद्यालयों के रूप में हैं।
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• एक उल्लेखनीय उपाय जो अनेक सुधार प्रयासों को एक साथ बंधित करते हैं वह शिक्षा की निजीकरण है। बहुत से लोगों का तर्क है कि भारत में निजी क्षेत्र द्वारा दी गई शिक्षा प्रभावी हो सकती है और इसलिए निजी स्कूलों की हिस्सेदारी को बढ़ाकर प्रणाली की क्षमता ही सर्वोच्च तरीका में सुधार है। राज्य सरकारों को प्रोत्साहन प्रबंधित कर निजी क्षेत्र में संस्थानों की स्थापना में सुविधा प्रदान करनी चाहिए। निजि क्षेत्र, विशेषकर दिल्ली स्थित संस्थानों और ख्याति प्राप्त अन्य संस्थानों जैसे आई.आई.टी., रूड़की विशवविद्यालय आदि को अपनी शाखाएं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नगरों में स्थापित करने के लिए उत्साहित किया जा सकता है उन्हें उचित मूल्यों के जारिए से पर भूमि उपलब्ध कराई जा सके।
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• एकीकृत नगर क्षेत्र विकास में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने का एक तरीका उत्तम शैक्षण्कि और चिकित्सीय प्रणाली उपलब्ध कराना होगा जिसमें औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रणालियां, उच्च कोटि की तकनीकी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएं, विश्वविद्यालय तथा वयवसायिक विद्यालय,विशेष सुविधाओं वाले अस्पताल, विदेश से आने वाले प्रवासियों के लिए शिक्षा प्रणाली की उपयुक्तता/ अनुकूलता, तथा शिक्षा व चिकित्सा क्षेत्र में आधुनिक/अति विशिष्ट सुविधाएं शामिल हैं।
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• राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में उच्चतर ओर तकनीकी शिक्षा में निजी और सरकारी संस्थानों, जिनका मानदण्ड स्तर चाहे प्रतिपक्ष एन.सी.टी- दिल्ली से बेहतर न हो पर तुलनीय हो, को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में एक राष्ट्रीय स्तर संबंद्ध विश्वविद्यालय की स्थापना करने की जरूरत है जिसमें शैक्षिक मानदण्ड राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यत प्राप्त हो, और जिसके साथ रा.रा.क्षे. के संस्थानों को संबद्ध किया जा सके।
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• खाद्द सुरक्षा, भारत में बड़े तौर पर परिचालित जन वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) द्वारा संहित है, जिसमें बहुत कुछ किए जाने की मांग है। यह समस्या इमदाद (सब्सिडी) के अपर्याप्त /निम्न स्तर तथा निर्धनों की क्रय क्षमता में अभाव दोनों के साथ ही साथ प्रबंध और लक्ष्य प्रप्ति से संबंधित है। जन वितरण प्रणाली की प्रभावशाली सुगमता, दिल्ली की ओर आने वाली संभावित निम्न आय वर्ग के प्रवासियोंय के लिए विकास प्रेरक यंत्रावली और आत्मसात घ्टक के रूप में एक ज़रिया है। यद्यपि जन वितरण प्रणाली अवसंरचना अधिकांश नगरों में विद्दमान है, जिनकी परिचालन प्रभावोत्पादकता निम्न स्तर की है। सुभेद्य वर्गों में जागरूकता में अभाव, अपर्याप्त भंडार तथा निम्न कोटि के सामान, इस सुविधा को सीमित करते हें जिनको इसकी सबसे अधिक जरूरत है।
कानून तथा व्यवस्था मुद्दे
दिल्ली को तुलनात्मक दृष्टि से सुरक्षित और कुशल आरक्षी राज्य समझा जाता है। कानून एवं व्यवस्था की समसयाएं जैसे वर्णित कम प्रखर ओर यहां पर उद्दमी सुरक्षित महसूस करते है। प्राय: यह देखा जाता है कि दिल्ली में अपराध करने के बाद अपराधी अक्सर उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा राज्य क्षेत्रों में चले जाते हैं। अनेक उद्दमी उत्तर प्रदेश में कानून तथा व्यवस्था स्थिति के बारे में आशांका रखते हैं और वहां पर निवेश करने के लिए उद्दमी इसमें सुधार की अपेक्षा करते है। यह, बहुत से मानते है कि इससे आर्थिक गतिविधियों के विकेन्द्रीकरण/स्थानांतरण, विशेषकर उत्तर प्रदेश उप-क्षेत्र को प्रीाावित कर रहें है।
कार्यनीतियां
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• दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों में अपराध स्वरूप में समानता तथा इसके परिचालन में अंतर्राज्यीय अपराधी गिरोहों को देखते हुए, राष्ट्रीय राजधाीन क्षेत्र में पुलिस आधुनिकीकरण के लिए एक परिपेक्ष्य योजना तैयार करने की जरूरत है। इसके लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में राजयों के क्षेत्राधिकार में पुलिस की माननीय के साथ-साथ सामग्री संसाधनों में सुधार अपेक्षित है।
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• क्षेत्र में नियमित रूप से अपराध संबंधी गतिविधियों पर नियंत्रण और निगरानी के लिए समान पुलिस/प्रशासनिक प्रणाली (जहां भी आवश्कय हो एक समान कानून सम्मिलित कर) के साथ केन्द्रीय समन्वय अभिकरण/संस्थानिक यंत्रावली स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी पुलिस स्टेशनों आदि में एकीकृत संचार प्रणाली, सांझाा वायरलेस प्रणाली और कंप्यूटरीकृत अपराध अभिलेख नेटवर्क के द्वारा जानकारी की साझेदारी की आवश्यकता है।
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• पुलिस, अभ्यारोपण, प्रशासन तथा न्यायिक प्रणाली के बीच समन्वय द्वारा अंतर्राज्यीय अपेक्षित अपराधियों की गिरफतारी, अपराधो की मुकद्दमेां में विलंब जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए यंत्रावली विकसित करने की जरूरत है।
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• विदेश से आने वाले अप्रवासी और तदुपरांत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से उनके निर्वासन की श्निाख्त करने की जरूरत है।
सामाजिक अवसंरचना सेक्टर पर कार्य नीति
- 1. सामाजिक अवसंरचना के समानमानक
- 2. सामाजिक अवसंरचना प्रावधान के निजी सहभागिता को प्रात्साहित करना
- 3. रा.रा.क्षे.में दिल्ली से बाहर अच्छी शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान
- 4. निजी और सरकारी सस्थानों को रा.रा.क्षे.शहरों में अपनी शाखाऍं खोलने हेतु प्रोत्साहित करना
- 5. चिकित्सा की अन्य पद्धतियों को प्रात्साहित करना
- 6. संपूर्ण रा.रा.क्षे. में नीति आधुनिकीकरण की योजना
सामाजिक अवसंरचना पर अधिक जानकारी हेतु निम्नलिख्ति दस्तावेज़ों को संदर्भ ले:
क्षेत्रीय योजना दस्तावेज़ – सामाजिक अवसंरचना
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http://www.indiahousing.com/infrastructure-in-india/social-infrastructure-india.html |