रा०रा०क्षे० में सिंचाई सेक्टर
सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता का जनसंख्या, खाद्यान की मांग, गैर-खाद्य कृषि तथा औद्योगिक मदों के उत्पादन, जीवन स्तर में सुधार तथा पारिस्थितिकी और पर्यावरण के संरक्षण से घनिष्ठ संबंध होता है। संघटक राज्यों में उप-क्षेत्र तथा स्थानीय दोनों स्तर पर कृषि भूमि के संरक्षण के लिए प्रभावशाली दिशा-निर्देश की कमी तथा प्रभावशाली नियंत्रण यंत्रावली के अभाव (कानूनी तथा संस्थागत) के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना के बावजूद उपजाऊ भूमि का शहरी उपयोग में परिवर्तन हो रहा है।
क्षेत्रीय योजना-2001 इस बारे में किसी विशिष्ट नीतियों तथा कार्यक्रमों का उल्लेख नहीं किया गया।
मुद्दें
अध्ययनों से पता चला है कि इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता को अलग से नहीं देखा जा सकता है। पीने के पानी तथा औद्योगिक उपयोग की मांग पर भी विचार किया जाना चाहिए। अन्य मुद्दे इस प्रकार है:
• क्षेत्र में अपर्याप्त जल संसाधन
• जल प्रतिपूर्ति के अभाव के परिणामस्वरूप भूमिगत-जल में गिरावट
नीतियां तथा प्रस्ताव
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विकास की दिशा जल स्त्रोतों के उपलब्ध होने पर निर्भर होगी। पानी की मांग-पूर्ति का अंतर इस क्षेत्र के विकास का एक प्रमुख घटक है जो विभिन्न नीति फैसलों और मांग के प्रबंधन द्वारा पूरा किए जाने की आवश्यकता है। प्रस्तावित नीतियां इस प्रकार है:
क्षेत्रीय तथा एकीकृत दृष्टिकोण
इस क्षेत्र के लिए एकीकृत जल स्त्रोतों प्रबंधन दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि सिंचाई, पेय जल तथा उद्योग की मांग पूरी करने के लिए समुचित जल स्त्रोतों का उपयोग तथा मांग प्रबंधन किया जा सके। इस क्षेत्र में सिंचाई, पीने तथा उद्योग जैसे विभिन्न उपयोगों के लिए पानी की मांग पूरी करने की दृष्टि से यह क्षेत्र अनेक बहु-उदे्श्यीय नदी घाटी/ बाँध परियोजनाओं पर निर्भर हैं, जिनमें बड़ी मात्रा में भंडारण किया जा सकता है और नहरों के द्वारा पानी लंबी दूरी के क्षेत्रों में भेजा जाएगा। यद्यपि इस क्षेत्र में पीने के पानी और औद्योगिक पानी की मांग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, फिर भी कृषि प्रयोजनों के लिए पानी का आबंटन नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। इस क्षेत्र के समग्र मांग पर शहरी विकास तथा गरीबी उपशमन मंत्रालय के साथ परामर्श करके पानी के हिस्से के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करते समय जल संसाधन मंत्रालय, जल-पोषित राज्यों और संघटक राज्यों द्वारा विचार किया जाना चाहिए। उप-क्षेत्रों में समग्र एकीकृत जल स्त्रोत प्रबंधन योजना तैयार करते समय पानी की आवश्यकता के लिए विभिन्न प्रयोजनों शोधित गंदा पानी, गाद और बरसाती पानी का इकट्ठा करना विभिन्न वर्षा जल संग्रह पद्धतियां पर विचार करना चाहिए। इसे राज्यों द्वारा अपने महा योजना/ विकास योजनाओं में भी शामिल किया जाना चाहिए।
संसाधनों का संवर्धन, मांग प्रबंधन तथा पानी के उपयोग में कुशलता
पहले पानी का उत्पादन किया जाता था प्रबंधन नहीं। पानी की उपलब्धता की कमी को उचित मांग प्रबंधन तथा पानी के उपयोग में कुशलता से कुछ हद तक पूर्ण किया जा सकता है। ऐसी संभावना है कि वर्ष 2021 तक प्रति वर्ष 16,748.0 एम०सी०एम० (यह मानकर कि प्रतिवर्ष राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को 12,000 एम०सी०एम० का 50% ही यमुना नदी के पानी से मिलेगा) पानी की अतिरिक्त आवश्यकता होगी, जिसके लिए अतिरिक्त जल स्त्रोत सृजित / संवर्धन /वर्तमान स्त्रोतों का उचित प्रबंध करना पड़ेगा। चूंकि यमुना तथा गंगा नदियों पर विशाल बाँध बनाकर पानी के स्त्रोतों का विस्तार करने में शायद दो दशक से भी अधिक समय लगने की संभावना है, जैसा पहले की योजनाओं में प्रावधान किया गया था, इसलिए यह आवश्यक होगा कि निम्नलिखित तरीके अपना कर पानी की उपलब्धता में वृद्धि की जाए:
कृत्रिम प्रतिपूर्ति तथा भूमिगत-जल संग्रह
- तालाबों, यमुना बाढ़ मैदानों, पेलियो-चेनलों, ऑक्स बो चेनलों, रिज़ के अनुकूल स्थानों पर प्रतिपूर्ति आदि के लिए छोटे चैक बाँध बना कर कृत्रिम प्रतिपूर्ति करना।
- घटे हुए जलभृत की प्रतिपूर्ति के लिए बरसाती मानसून समय के दौरान अधिशेष नहर के पानी का उपयोग करना।
- भवन निर्माण उप-नियमों में छतों पर बरसाती पानी के संग्रह को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए विशेष रूप से अतिशेषित और डार्क ब्लाकों में अर्थात् सी०जी०डब्ल्यू०बी० ने पहचान किये गए अनिश्चित भूमिगत-जल स्त्रोतों वाले इलाकों में किया जाना चाहिए।
पानी की मांग का प्रबंधन
- यह आशा है कि इस क्षेत्र में मल-जल व्यवस्था प्रणाली से शोधित अपशिष्ट जल लगभग 2,423.25 एम०सी०एम० प्रति वर्ष होगी जिसे अनिवार्य रूप से कृषीय/ अपेय उपयोग के लिए रखा जाना चाहिए ताकि सिंचाई प्रयोजनों के लिए समग्र पानी की मांग को कम किया जा सके।
- यह आशा है कि इस क्षेत्र में वर्ष 2021 तक औद्योगिक प्रयोजनों के लिए पानी की आवश्यकता 4374.27 एम०सी०एम० प्रति वर्ष होगी, यह सिफारिश की जाती है कि क्षेत्र में पानी पर आधारित उद्योगों को लगाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- इस क्षेत्र में रिसाव सिंचाई पद्धति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि सिंचाई क्षेत्र से पानी की बचत हो सके। यदि 25% पानी भी बचाया जाए तो इससे प्रति वर्ष 3,500 एम०सी०एम० पानी की बचत होगी।
किसी सफल जल स्त्रोत प्रबंधन प्रणाली के लिए प्राधिकरणों का विकेन्द्रीकरण, उत्तरदायित्व और तकनीकी इकाइयों के साथ ही सामुदायिक जागरूकता, भागीदारी तथा विभिन्न पहलुओं की निगरानी सबसे जरूरी है।
रा०रा०क्षे०में सिंचाई पर और अधिक जानकारी के लिए, कृपया नीचे उल्लेखित दस्तावेजों का संदर्भ लें:-
क्षेत्रीय योजना दस्तावेज – सिंचाई
क्षेत्रीय योजना कार्य योजना – सिंचाई
संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर जाने के लिए , पर क्लिक करें। http://wrmin.nic.in/ |