हिस्‍ट्री

राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र की संकल्‍पना का क्रमिक विकास

दिल्‍ली 1951 से जनसंख्‍या में अभूतपूर्व वृद्धि की स्‍थिति का सामना कर रही है। वर्ष 1951-61, 1961-71, 1971-81 और 1991-01 के दशकों में क्रमश: 52.44%, 52.91%, 52.98%, 51.45% और 47.03% की दर से वृद्धि दर्ज की गई है। जनसंख्‍या वृद्धि के इस वेग का एक प्रमुख कारण शहर की ओर जनसंख्‍या के प्रवसन की प्रवृत्‍ति रही है जो कि न केवल समीपवर्ती राज्‍यों से हुआ है बल्‍कि बिहार जैसे राज्‍यों से भी प्रवसन हुआ है। दिल्‍ली की जनसंख्‍या में हुई वृद्धि से भीडभाड बढती जा रही है और नागरिकों को मिलने वाली सुविधाओं का अभाव होता जा रहा है। यह महसूस किया गया है कि जैसे-जैसे दिल्‍ली का विकास होता जाएगा, वैसे-वैसे भूमि, आवास, परिवहन और आवश्‍यक आधारभूत संरचना जैसेकि जल आपूर्ति और मल-व्‍ययन के संबंध में दिल्‍ली की कठिनाइयां अधिक विकट होती जाएंगी।

इन्‍हीं चिंताओं के परिणामस्‍वरुप, क्षेत्रीय संदर्भ में दिल्‍ली की आयोजना की आवश्‍यकता महसूस की गई थी:
  • 1956 अंतरिम सामान्‍य योजना में सुझाव दिया गया है कि 'बाह्य क्षेत्रों और यहां तक कि दिल्‍ली क्षेत्र के बाहर के क्षेत्रों के सुनियोजित विकेन्‍द्रीयकरण के लिए गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए।'

  • 1961 केन्‍द्रीय गृह मंत्री के अधीन स्‍थापित उच्‍च शक्‍तिप्राप्‍त बोर्ड

  • 1962 क्षेत्रीय संदर्भ में दिल्‍ली की महत्‍वपूर्ण आयोजना के लिए महायोजना

  • 1973 केन्‍द्रीय निर्माण एवं आवास मंत्री के अधीन पुनर्गठित उच्‍च शक्‍तिप्राप्‍त बोर्ड

  • 1985 सहभागी राज्‍यों हरियाणा, राजस्‍थान और उत्‍तर प्रदेश की सहमति से संघ की संसद द्वारा राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्रीय योजना बोर्ड अधिनियम का अधिनियमन, एनसीआर योजना बोर्ड गठित।