विरासत और पर्यटन
क्षेत्रीय योजना 2001 में, इस क्षेत्र के लिए कोई विशेष नीतियों और कार्यक्रमों की परिकल्पना नहीं की गई थी। तथापि, चूंकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आर्थिक आधार को मजबूत करने के लिए एवं संतुलित और सुव्यवस्थित विकास के लिए पर्यटन में बड़ी समर्थता है, अत: इस योजना में इस क्षेत्र में एकीकृत पर्यटन विकास एवं धरोहर संरक्षण व प्रबंघन पर विशेष जोर दिया गया है।
& पर्यटन और धरोहर संरक्षण की अनिवार्यता के बीच एक घनिष्ट और सहजीवी संबंध है। धरोहर को सुरक्षित रखना और पर्यटन विकास की सहयोजित कार्यनीतियां रोजगार के महत्वपूर्ण आर्थिक सृजन और विकेन्द्रित शहरी विकास के उपकरण के रूप में कार्य करेगी।
धरोहर
इस क्षेत्र की धरोहर, मानव-निर्मित और प्राकृतिक दोनों ही को उपेक्षा से हानि पहुंची है और विडंबनीय बात यह है कि शहरी आबादी और औद्योगिक क्षेत्र के योजनाबद्ध विकास में हुई भूल-चूक के कारण, साथ ही साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अनियोजित और अनाधिकृत वृद्धि के कारण पूर्वयोजना में इस क्षेत्र पर उचित ध्यान न देने के कारण भी इसे उतनी ही हानि हुई है।
मानव-निर्मित धरोहर
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) अथवा राज्य पुरातत्व विभागों द्वारा सुरक्षित रखे हुए कुछ स्मारक अभी ठीक हालत में और बचे हुए हैं। तथापि, बड़ी संख्या में असुरक्षित स्मारक उपेक्षा, बर्बरता और अतिक्रमण के कारण नष्ट हो चुके है, क्योंकि वर्तमान महा/विकास योजनाओं साथ ही साथ क्षेत्रीययोजना में उन्हें बचा कर रखने की कोई यंत्रावली नहीं थी । असुरक्षित स्मारक का संदर्भ उन स्मारक से है, जो सांस्कृतिक रूप से मूल्यवान नहीं है, लेकिन वे फिर भी, सांस्कृतिक/ऐतिहासिक धरोहर के अच्छे उदाहरण है जिन्हें समान स्तर की सुरक्षा दी जानी चाहिए ।
एक दूसरी धरोहर जो क्रमश: नष्ट होती जा रही है, वह परंपरागत शहरी सौंदर्य है। ऐसा इसलिए है कि दोनों, केन्द्र/राज्य पुरातत्व संरक्षण अधिनियमों मे, उन्हें मूल्यवान धरोहर के रूप में नहीं माना गया है । इन क्षेत्रों में व्यक्तिगत भवन जो सुरक्षित रखने योग्य हो या न हो, लेकिन जब इन्हें सामूहिक रूप से देखा जाए, जो यह मूल्यवान धरोहर के द्योतक हैं व सरंक्षण योग्य हैं ।
धरोहर स्थलों की पहचान
इस क्षेत्र में 258 केन्द्र सुरक्षित स्मारक और 20 राज्य सुरक्षित स्मारक हैं ।
कानून द्वारा सुरक्षित उपरोक्त स्मारकों के अलावा कला और सांस्कृतिक धरोहर के लिए भारतीय राष्ट्रीय ट्रस्ट (आई.एन.टी.ए.सी.एच.) ने रा.रा.क्षे. में सुरक्षित रखने योग्य स्मारकों की बड़ी सूची तैयार की है । इसने अभी तक क्षेत्र में 1,627 स्मारकों और 26 संरक्षित क्षेत्रों की पहचान की है जिन्हें सुरक्षित रखने की आवश्यकता है। इन धरोहर स्थलों की पहचान और सूचीबद्ध करने की जरूरत है जिससे उन्हें अनुकूल सुरक्षा दी जा सके । यह उन संरक्षित क्षेत्रों के अस्तित्व की पहचान में मदद करेगी, जिन पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
जफर हसन ने 1911 में दिल्ली में कुल 1,321 स्मारकों की पहचान की थी और एमपीडी-2001 में भी प्रतिबिंबित की गई है । चूंकि उस समय संरक्षण की कोई सकारात्मक नीति नहीं थी, कई वर्षों पश्चात् यह संख्या, आई.एन.टी.ए.सी.एच. के अनुसार, घटकर 1,208 रह गई, जिसमें 166 केंद्र संरक्षित स्मारक शामिल हैं जो ए.एस.आई. अधिनियम, 1958 के अधीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) द्वारा सुरक्षित हैं। दिल्ली नगर निगम द्वारा इन स्मारकों को धरोहर भवनों के तौर पर अधिसूचित किया गया है। इसके अलावा, राज्य सरकार लगभग 150 स्मारकों को एनसीटी-दिल्ली सरकार द्वारा स्मारकों को परिरक्षण अधिनियम अधिसूचित होने के बाद, जल्द ही अधिसूचित करने का प्रस्ताव है। बकाया स्मारकों को इस समय कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं है और वे खतरे में हैं। एनसीटी-दिल्ली सरकार, 100 वर्ष से पुराने भवनों के परिरक्षण के लिए भी घरोहर भवन अधिनियम बनाने की प्रक्रिया में हैं।
मानव निर्मित घरोहर स्थलों की सुरक्षा के लिए नीतियां और प्रस्ताव
केंद्र और राज्य के विधान भवनों/स्थलों की भौतिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं परंतु वह वास्तविक सुरक्षित रखने वाले क्षेत्र के आस-पास की भूमि संपत्ति पर विकास को नियंत्रित नहीं कर सके हैं । यहां पर सुरक्षित स्मारक के आसपास की भूमि को सुरक्षा देने के लिए शहरी और ग्रामीण योजना विधान को लागू करना संभव है। इस दृष्टि सेृ निम्नलिखित नीतियां/कार्यनीतियां प्रस्तावित हैं:
i) रा.रा.क्षे. के सभी नगरों/जिलों में स्मारकों और संरक्षित क्षेत्रों को सूचीबद्ध किए जाने का काम प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए। सभी केंद्र सुरक्षित और सूचीबद्ध भवनों का हरेक नगर के महा/जोनल योजनाओं और क्षेत्र के जिला योजनाओं में पद/नींव छाप (फूट प्रिंट) सहित अंकित होना चाहिए। उपरोक्त योजनाओं में उनके सुरक्षित रखने की विशेष आवश्यकताओं का जिक्र होना चाहिए तथा उनके महत्व के स्तर के अनुरूप हो और भिन्न हो सकते हैं। कानूनी तौर पर सुरक्षित भवनों और 'सूचीबद्ध' भवनों का स्पष्ट होना चाहिए । 'सूचीबद्ध' भवनों को समान स्तर की वैज्ञानिक सुरक्षा की जरूरत नहीं होती जैसी कि केंद्र और राज्य द्वारा सुरक्षित स्मारकों को होती है।
ii) संघटक राज्यों के शहरी और ग्रामीण योजना विधान में "विशेष क्षेत्रों" के विकास का प्रावधान है। हरेक राज्य को इस विधान का उपयोग करते हुए सुरक्षित स्मारकों के आस-पास की भूमि को विशेष क्षेत्र घोषित करना चाहिए और इसके 300 मीटर की परिधि क्षेत्र के लिए क्षेत्र स्तर योजनाएं बनानी चाहिए। इन योजनाओं में विकास का स्वरूप क्षेत्र में किए जाने और न किए जाने वाले गतिविधियों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए जो कि केंद्र और राज्य पुरातत्व संरक्षण विधानों में उपलब्ध निर्देशों के अनुरूप होने चाहिए।
iii) सुरक्षित/सूचीबद्ध स्मारकों के अतिरिक्त, इस क्षेत्र के समृद्ध इतिहास में कुछ छिपे अथवा जमीन में दबे स्थल भी मौजूद हैं। पुरातत्व से संबंधित विभागों को बताना चाहिए कि किन अनुमानित जगहों में ऐसा भूमिगत खंडहर मौजूद है, और इन क्षेत्रों को हर एक नगर के महा योजना और संबंधित जिला स्तरीय योजनाओं में विधिवत चिन्हित किया जाना चाहिए। इन क्षेत्रों में निर्माणाधीन प्रस्तावित भवनों के भवन योजनाओं को स्वीकृत करने से पहले संबंधित पुरातत्व विभागों से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करने की आवश्यकता है।
iv) अगर नींव खोदते समय ऐतिहासिक भवनों के साक्ष्य मिलें तो निर्माण गतिविधि को जारी रखने की अनुमति देने से पहले उपयुक्त पुरातत्व विभागों को इस स्थल से साक्ष्य एकत्रित करने और इसमें किसी शिल्पकृति मिलने पर उसको हटाने के लिए विशिष्ट समय दिया जाना चाहिए। इन नीतियों के क्रियान्वयन के लिए संघटक राज्यों के शहरी और ग्रामीण योजना अधिनियम में अगर कोई संशोधन वांछित है, तो उन्हें वह कर देना चाहिए।
प्राकृतिक घरोहर
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र समृद्ध प्राकृतिक घरोहर स्थलों से परिपूर्ण है, जिसे संरक्षित क्षेत्र के तौर पर विकसित किए जाने की जरूरत है। इस क्षेत्र की जैविक विविधता को संरक्षित रखने के लिए, इसे चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। यह हैं:
i) विशेष सुरक्षित क्षेत्र: इसमें राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और वन शामिल हैं। वे निम्नवत सूचीबद्ध हैं:
- सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान - अलवर, राजस्थान
- सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान - गुड़गांव, हरियाणा
- इंदिरा प्रियदर्शिनी अभयारण्य - असोला, एन.सी.टी.-दिल्ली
- हस्तिनापुर अभयारण्य - मेरठ, उ.प्र.
ii) पहाड़ी क्षेत्र:
- एनसीटी-दिल्ली रिज
- गुड़गांव, फरीदाबाद और अलवर में अरावली पर्वतमाला
iii) नदी प्रणालियां, आर्द्र भूमि और जलाशय:
- यमुना
- गंगा
- यमुना आर्द्र भूमि प्रणालियां
- नजफगढ़ झील, एन.सी.टी.-दिल्ली और हरियाणा
- भलसवा झील, एनसीटी-दिल्ली
- दमदमा झील, गुड़गांव (हरियाणा)
- सोहना झील/गर्म पानी का झरना, गुड़गांव (हरियाणा)
- बडकल और आसपास की झीलें, फरीदाबाद (हरियाणा)
- ग्रामीण तालाबों सहित सभी वर्तमान निर्मित और प्राकृतिक जलाशय
iv) पर्यावास:
इसमें, शहरी और ग्रामीण बस्तियां और इन क्षेत्रों में पैदा होने वाली विभिन्न फसलों की जैविक विविधता, पशुधन, हरित क्षेत्र और विकसित क्षेत्रों में खुली जगह जहां अनेक तरह की जैव संपदा पायी जाती हैं शामिल हैं।
प्राकृतिक घरोहर स्थलों को सुरक्षित रखने के लिए नीतियां और प्रस्ताव
प्राकृतिक घरोहर के सभी चिन्हित क्षेत्रों में भूमि के उपयोग और सामीप्य के प्रदूषण नियंत्रण के मायने में सुरक्षित करना चाहिए ताकि जैविक विविधता की सुरक्षा और शहरी पारिस्थिकी व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके ।
पहाड़ी क्षेत्रों में सही प्रकार किरगों का वृक्षारोपण और एक ही प्रकार की वनस्पति की वृद्धि पर नियंत्रण किया जाना चाहिए। अच्छी कृषिय योग्य भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाने के लिए फसल चक्र, उगाए जाने वाले बागवानी जातियों की प्रकार तथा उनका भूमि और सूक्ष्म जलवायु पर प्रभावको अच्छी तरह समझना चाहिए। प्राकृतिक पर्यावरण में सुधार के लिए सामाजिक वनरोपण, ऊर्जादायक पौधरोपन और कृषि आधारित वन सहित सही तरह की कृषि पद्धतियां अपनानी चाहिए । इस क्षेत्र में जैविक विविधता के आंकडे बहुत कम उपलब्ध हैं । इसे कतिपय विशिष्ट अध्ययनों के जरिए सदृण बनाया जाना चाहिए।
पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार के दिनांक 07.05.1992 को अधिसूचित निर्देशों जिसमें अरावली पर्वतमाला के विशिष्ट क्षेत्र में पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाली कुछ गतिविधियों पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3(1) और 3(2)(ई) और पर्यावरण (संरक्षण) नियमावली 5(3)(घ) के अंतर्गत कतिपय प्रतिबंध लगाए गए हैं के निषेधों को क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों को लागू करते समय ध्यान में रखा जाए । उपरोक्त अधिसूचित क्षेत्रों के लिए एक विशेष संरक्षण योजना तैयार की जानी चाहिए।
पर्यटन
प्रत्येक राज्य में संबंधित पर्यटन विभागों के जरिए पर्यटन का पर्याप्त विकास हुआ है। राज्य के संबंधित विभाग बहुत सक्रिय रहे हैं और उन्होंने अपने राज्य में विविध पर्यटन स्थलों को विकासित किया है। क्षेत्रीय योजना-2001 में इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया गया था। चूंकि अब इसे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि माना जाने लगा है अतएव इसे क्षेत्रीय योजना-2021 में सम्मिलित किया गया है।
पर्यटन स्थलों के विकास के लिए नीतियां और प्रस्ताव
पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए हुए पर्यटन विकास योजना तैयार की जानी चाहिए, जिसमें क्षेत्र के भीतर एक से चार दिन के अंदर पूरा होने वाले अपेक्षाकृत छोटे पर्यटक सर्किट दर्शाते हुए निम्नलिखित नीतियों और कार्यनीतियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए:
i) धरोहर और पर्यटन स्थलों का उपयोग प्रत्यक्ष भूमि उपयोग नीति को विकास की ओर विकेन्द्रीकृत पद्धति के औजार के तौर पर किया जाना चाहिए। अतिक्रमण और दुरूपयोग रोकने के लिए भूमि उपयोग योजना में इनकी स्पष्ट रूप से पहचान तथा सांस्कृतिक और आरामगाह पर्यटन संभावनाओं के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।
ii) एक से लेकर तीन दिन यात्रा वाले पर्यटन सर्किट सृजित किए जाने चाहिए जिसमें पर्यटन, आरामगाह, सांस्कृतिक तथा धरोहर स्थल शामिल किए गए हो और इनके विकास के लिए परिवहन तथा अन्य अवसंरचनाओं के विकास के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके लिए वित्त प्रोत्साहन उपलब्ध कराये जाने चाहिए । पर्यटन को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र की सहायता लेनी चाहिए और क्षेत्र में पर्यटक गंतव्यों की मरम्मत और रखरखाव में निवेश के लिए इन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
iii) पर्यटन को महत्वपूर्ण रोजगार स्रोत के रूप में पहचान मिलनी चाहिए।
iv) धरोहर और पर्यटन स्थलों के लिए उचित आंकडों का विकास किया जाना चाहिए और इसे समय-समय पर अद्यतन करते रहना चाहिए।
v) प्रचार माध्यमों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में धरोहर और पर्यटन स्थलों का प्रसार कराया जाना चाहिए।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में विरासत और पर्यटन पर और अधिक सूचना हेतु नीचे दिए गए दस्तावेजों का संदर्भ लें ।
क्षेत्रीय योजना दस्तावेज - विरासत और पर्यटन सेक्टर
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