पर्यावरण
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एक गतिकीय शहरी क्षेत्र है जिसमें 100 से अधिक शहरी केन्द्रों और रिज, आर्द्र भूमियां, अभयारण्य इत्यादि जैसी पारस्थितिक संबेदनशील प्राकृतिक विशेषताओं से संपन्न है जिसे एक तर्कसंगत भूमि उपयोग स्वरुप और संरक्षण के जरिए योजनाबद्ध तरीके से शहरी विकास में पर्यावरणीय संपोषणीय संरचना प्राप्त करने की जरुरत है। भूमि की अधिकतम संभाव्य कीमत प्राप्त करने की दृष्टि से कृषीय भूमि को गैर-कृषीय भूमि में परिवर्तित करने तथा उसको अजैविक उपयोग में लाने की प्रवृति इतनी तीव्र है कि इसे प्राप्त करने के लिए बहुत संगत तथा निर्धारणात्मक बनाए जाने की आवश्यकता होगी। भविष्य के विकास की रुपावली को स्थापित करने में पर्यावरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। पर्यावरणीय चिन्ता को समग्र रुप से देखने की जरुरत है और प्राकृतिक साथ ही साथ निर्मित वातावरण दोनों के सरोकार को संरक्षित करने की जरुरत नही है अपितु प्राकृतिक संकटों के विभिन्न रुप से सुरक्षित करना है।
क्षेत्रीय योजना-2021 में, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पर्यावरण और परिस्थितिकी –विकास के लिए निम्नलिखित नीतियों और प्रस्तावों की परिकल्पना की गई थी:
i. वायु प्रदूषण: :-
प्रदुषण के प्रभावों को विभिन्न उचित बहि:क्षेत्रीय अनुसंधान अध्ययनों के द्वारा पहचान की जानी चाहिए ताकि भिन्न उप-क्षेत्रों में औद्योकिरण का स्तर और प्रकार संस्थापित किया जा सके।
ii. जल प्रदुषण: -
घरेलू और औद्योगिक गंदे पानी को शोधित किए बिना जमीन अथवा जलाशयों में बहाए जाने की अनुमति नहीं होना चाहिए जब तक पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत विनिर्दिष्ट मानदण्डों के अनुसार गंदे पानीको शोधित किया जाए। जहां तक संभव हो, नए उद्योगों का विकास चिन्हित और वर्गीकृत ओद्योगिक क्षेत्रों/इलाकों में होना चाहिए जहां गाद को प्राकृतिक क्षेत्रों में बहाए जाने से पूर्व उद्योग परिसर के अन्दर उपयुक्त गाद शोधन सुविधा द्वारा उचित शोध की व्यवस्था हो। आबादी के वे क्षेत्र जहां नियमित मल-जल व्यवस्था योजनाएं उपलब्ध नहीं है वहां व्यक्तिगत परिवार या समुदाय के लिए अस्थाई उपायों के रुप में कम लागत वाली सफाई प्रबंधन प्रणाली अपनाई जानी चाहिए। खतरनाक और प्रदुषण फैलाने वाले उद्योगो के लिए नियंत्रित पर्यावरणीय सुरक्षित जोन सृजित की जानी चाहिए।
iii. ठोस कचरा:-
सभी शहरी और कृषीय क्षेत्रों में ठोस कचरा प्रबंधन और इसके पुन: उपयोग के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
iv. समायोजन समिति:-
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए जल, भूमि और वायु प्रदूषण से बचाव और नियंत्रण के लिए एक समायोजन समिति गठित की जानी चाहिए।
v. वृक्षारोपण कार्यक्रम:-
सभी संबंधित अभिकरणों द्वारा ऊसर और अकृष्य भूमि पर वृक्षारोपण कार्यक्रम शुरु करने चाहिए।
उप-क्षेत्रों के शहरी क्षेत्रों में विकास योजनाएं बनाते और उन्हें कार्यान्वित करते समय स्थानीय योजना और योजना कार्यान्वयन प्राधिकरणों को सावधानी बरतनी चाहिए ताकि क्षेत्र के प्रमुख परिवहन मार्गों के साथ-साथ अनियोजित और अनियंत्रित गलियारे विकास के फैलाव को रोका जा सके।
क्षेत्रीय योजना 2001 की समीक्षा मे यह सुझाव दिया गया कि क्षेत्र में पर्यावरणीय निम्नीकरण को रोका जाए अपशिष्ट जल को शोधित और रिसाईक्लिड किया जाए, पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रो की सुरक्षा की जाए, उद्योग के लिए योजना बनाते समय पर्यावरण का ध्यान रखा जाए और पर्यवरण एवं वन मंत्रालय के प्रदूषण नियंत्रण मानकों को लागू किया जाए। यह भी निर्दिष्ट किया है कि अच्छी कृषीय भूमि का शहरीकरण और अनधिकृत गलियारा विकास से सुरक्षित किया जाए।
नीतियां और प्रस्ताव
भूमि सबसे महत्वपूर्ण और संकटापन्न पर्यावरण संसाधन है। प्रत्येक भूमि उपयोग/गतिविधि अर्थात आवास, परिवहन, उद्योग, मनोरंजन, संरक्षण इत्यादि अथवा उनके अनुबंधन का पर्यावरण अर्थात वायु, जल, भूमि आदि पर प्रभाव पड़ता है और क्षेत्र में पर्यावरण की दशा को सुधारने के लिए निम्नलिखित नीतियां और कार्यनीतियां प्रस्तावित की गई है:
i) क्षेत्र की अच्छी कृषीय भूमि को सुरक्षित और संरक्षित किया जाना चाहिए। दिल्ली को छोड़कर अन्य वर्तमान शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त अधिशेष क्षमता है जहां पर बहुत बड़ी संख्या में आबादी सामंजस्य की जा सकती है। यह अच्छी कृषी भूमि का शहरी उपयोगों में अनावश्यक परिवर्तन की जरुरत को कम करेगा।
ii) दोनों सतही और भूमिगत जल स्रोतों को सुरक्षित तथा संरक्षित रखने के लिए भूमि उपयोग आबंटन बहुत सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।
iii) क्षेत्र के नगरों की महा /विकास योजना बनाते समय भूमि उपयोग आबंटन के लिए भूमि उपयुक्तता विश्लेषण को सम्मिलित किया जाना चाहिए, जिससे कि बस्ति, कृषी, वन खण्ड, उद्योग और मनोसंजनात्मक उपयोगों के लिए उपयुक्त अंतर्भूतीय क्षेत्र की पहचान हो सके। क्षेत्र में और वृद्धि को उन क्षेत्रों की ओर मोड़ देना चाहिए, जो कि केवल बस्ती वृद्धि के लिए उपयुक्त है।
iv) वायु की गुणवता, जल की गुणवता (सतही और भूमिगत जल), ध्वनि प्रदूषण और भूमि प्रदूषण पर आकड़ें बहुत घटिया हैं और क्षेत्र में इन्हें सृजित किए जाने की जरुरत है। इस क्षेत्र में केवल तीन वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन है। बेहतर आंकड़ों को तैयार करने के लिए, और वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों की आवश्यकता है। संबंधित राज्य सरकारों द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उप-क्षेत्रों में एक समिति गठित की जानी चाहिए जोकि वायु और जल की गुणवत्ता की निगरानी वाले स्टेशनों को बनाने के स्थानों की सिफारिश करे, नियमित आधार पर अवस्था की समीक्षा तथा सुधारीय उपायों की सिफारिश करें। संबंधित राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा नियमित रुप से उपर-कथित धटको की निगरानी करनी चाहिए। यह आकड़े जनता की जागरुकता के लिए आसानी से उपलब्ध होने चाहिए।
v) क्षेत्र की विकास गतिविधियों का पालन करते समय पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और इसकी नियमावली के प्रावधानों का अनुपालन करना चाहिए। न्यूनतम राष्ट्रीय मानदण्ड पर आधारित क्षेत्र की वहनीय क्षमता का ध्यान रखना चाहिए ताकि क्षेत्र के लोगों को बेहतर जीवन स्तर उपलब्ध कराया जा सके। निम्नलिखित घटकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए:
- न्यूनतम राष्ट्रीय मानदण्ड
- क्षेत्र की पर्यावरण संवेदनशीलता
- जलाशयों और पर्यावरण की वहनीय क्षमता
- पर्यावरण का वर्तमान स्तर
- क्षेत्र की स्वास्थ्य आवश्यकता
vi) नियंत्रीत पर्यावरण और संयुक्त गाद शोधन संयंत्र (सी.ई.टी.पी.) के साथ वहनीय क्षमता संकल्पना को ध्यान में रखते हुए औद्योगिक उद्यान/इलाके बनाए जाने चाहिए। क्षेत्र में खतरनाक कचरा पैदा करने वाले उद्योगों को भूमि आबंटन उचित ढंग से किया जाना चाहिए जिसमें संयुक्त शोधन, भंडारण और निपटान सुविधा (टी.एस.डी.एफ.) उपलब्ध हो। इसी प्रकार, ग्रीन हाऊस गैसों के स्तरों को कम करने के लिए राज्य सरकारों को विद्युत की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कुशल और स्वच्छ प्रौद्योगिकी आधारित विद्युत संयंत्रों को प्रोत्साहित / अपनाया जाना चाहिए।
vii) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न भागों में उनका प्रदर्शन जांचने के संबंध में आंकड़ो को बनाने और नियमित निगरानी की जरुरत है। इस कार्य को निर्वाह करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड में एक कक्ष सृजित किया जाना चाहिए।
viii) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित निम्नलिखित क्षत्रों/जोनों को संरक्षित/सुरक्षित किया जाना चाहिए:
- आरक्षित/सुरक्षित वन
- आरक्षित और सुरक्षित वनों के अलावा अन्य वन
- स्मारक-राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय
- धरोहर/ सांस्कृतिक स्थल
- दृश्यनीय क्षेत्र
- राष्ट्रीय उद्यान
- अभयारण्य
- लुप्तजाति-जीव जन्तु और वनस्पति वाले क्षेत्र
- बायोस्फीयर रिजर्व
- आर्द्र-भूमि
- सिसार्टस/पर्यटन सैरगाह रुचि वाले क्षेत्र
- जलाश्यों
- सोते/जल प्रतिपूर्ति क्षेत्र
- अन्य पर्यावरणीय संसाधन क्षेत्र
ix) पर्यावरण और वन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 3 (1) तथा 3 (2) (ड़) और पर्यावरण (संरक्षण) नियमावली, 1986 के नियम 5 (3) (घ) के अंतर्गत अरावली श्रंखला के विशिष्ट क्षेत्रों में कुछ गतिविधियां जिनके कारण क्षेत्र में पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है, को प्रतिबंधित करते हैं और निम्नलिखित प्रक्रम व संचालन पर वर्जित करते है:
- विस्तार/आधिनिकीकरण सहित किसी नये उद्योग को लगाना।
- (a) (a) लीज पर खनन का नविनीकरण सहित सभी नये खनन का प्रचालन।
(b) बाघ परियोजना के अंतर्गत क्षेत्रों और अभयारण्यों/ राष्ट्रीय उद्यानो में खनन के लिए वर्तमान लीजें और /अथवा
(c) सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना खनन कार्य करना।
- वृक्षों की कटाई
- किसी भी निवास इकाई के समूह, फार्म हाउस, शेड, सामुदायिक केन्द्रों, सूचना केन्द्रों का निर्माण और ऐसे निर्माण से संबंधित कोई भी अन्य गतिविधि (इससे संबंधित सड़क और अवसंरचना को कोई भी भाग)
- विद्युतीकरण(नय़ी प्रसारण लाईन बिछाना)
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अरावली श्रंखला में ऐसी कोई गतिविधियां नहीं ली जानी चाहिए।
कुछ एक क्षेत्रों में कुछ प्रक्रमण और संचालन पर बिना आज्ञा के कार्यान्वित करना वर्जित है।
- 1. सभी आरक्षित वन, सुरक्षित वन अथवा अन्य कोई क्षेत्र जिसे अधिसूचना की तारीख से हरियाणा राज्य के गुड़गांव जिला और राजस्थान राज्य के अलवर जिला के संबंध में राज्य सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अभिलेखों में ‘वन’ दिखाया गया है।
- 2. निम्न दिखाये सभी क्षेत्र:
(क) गैर मुमकिन पहाड़, अथवा
(ख) गैर मुमकिन राड़ा, अथवा
(ग) गैर मुमकिन बछेड़, अथवा
(घ) बंजर बीड़, अथवा
(ड़) रून्ध।
- हरियाणा राज्य के गुड़गांव जिला और राजस्थान राज्य के अलवर जिला के संबंध में इस अधिसूचना के दिन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए भूमि अभिलेखों के अनुसार है।
- 3. पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, 1900 की धारा 4 और 5 के अन्तर्गत अधिसूचना में सम्मिलित किए गए सभी क्षेत्र, जो इस अधिसूचना के जारी होने की तारीख तक हरियाणा राज्य के गुड़गांव जिले पर भी लागू है।
- 4. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (1972 की 53) के अन्तर्गत अधिसूचित सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान और सरिस्का अभयारण्य के सभी क्षेत्र हैं।
- 5. सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान और सरिस्का सैंक्चुरी के सभी क्षेत्रो को वाईल्डलाइफ संरक्षण अधिनियम 1972 (53 आफ 1972) के अन्तर्गत अधिसूचित किया जाना
पर्यावरण सेक्टर पर अधिक जानकारी हेतु नीचे उल्लेखित दस्तावेजों का संदर्भ लें।
क्षेत्रीय योजना दस्तावेज – पर्यावरण क्षेत्र
संबंधित मंत्रालयी वेबसाईट देखने के लिए, पर क्लिक करें। http://www.envfor.nic.in/ |