जल-निकासी (ड्रेनेज)

जल-निकासी भौतिक अवसेरचना का महत्वपूर्ण घटक है जिनमें भूमि से अधिशेष बरसात / सिंचाई के पानी को निकालना तथा निपटान करना शामिल है। इसके दो पहलू हैं पहला बाढ़ से सुरक्षा तथा दूसरा बरसाती पानी को निकालना है। सामान्यत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गंगा बेसिन की बेहतर एकीकृत नाली जल-निकासी प्रणाली का भाग है। इस पूरे क्षेत्र में फैली कम ढालू जमीन, नदियों / नालियों की कटावकारी गतिविधियों को रोक देता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के किसी बेसिन / उप-बेसिन में बरसाती जल को छोड़ना केवल स्थानीय नहीं बल्कि क्षेत्रीय संबंध है जिसमें हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा एन.सी.टी.-दिल्ली के क्षेत्र शामिल है। अत: यह आवश्यक है कि समीप के राज्यों के साथ एकीकृत तरीके से क्षेत्रीय स्तर पर जल-निकासी प्रणाली बनाई जाए। भू-स्थिति, वर्षा की तीव्रता, मिट्टी के गुण, सिंचाई पद्धतियां, फसले, फैली वनस्पतियां जल-निकासी प्रणाली के प्ररुप और डिजाइन के लिए महत्वपूर्ण निर्धारण कारक हैं। चूंकि शहरी विस्तार अपरिहार्य है, इसलिए मौजूदा नीतियों की पुन: संरचना के साथ ही साथ नई / अनुपूरक नालियों के प्रावधान, उपयुक्त बाढ़ बचाव उपायों का कार्यान्वयन, प्राकृतिक जल-निकासी रास्तों का संरक्षण, भूमिगत जल प्रतिपूर्ति का सुधार तथा अन्य पर्यावरणीय सुधार जैसे गंदे पानी की नालियों से बरसाती नालों में प्रवाह को रोकना तथा यमुना आदि नदियों के प्रदूषण के लिए उपाय करने की आवश्यकता है। झोपड़-पट्टियों, पुनर्वास कालोनियों, अनौपचारिक / अनाधिकृत कालोनियों आदि जैसी छोटी बस्तियों में जल-निकासी के समुचित प्रावधान की तरफ पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता है।

क्षेत्रीय योजना-2001 में प्रस्ताव किया गया कि खुली नालियां, जो विशेष रुप से समस्या और प्रदूषण के कारण हैं, बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए और उन्हें बंद कर दिया जाना चाहिए। जिन क्षेत्रों में वार्षिक बरसात 75 से.मी. से अधिक होती है, वहां गंदे पानी तथा बरसाती पानी के लिए अलग प्रणानियों की सिफारिश की जाती है। यदि औसत बरसात 75 से.मी. से कम हो, तो जल-निकासी सहित एक संयुक्त मल-जल व्यवस्था प्रणाली लाभप्रद होगी।

वर्ष 1999 में क्षेत्रीय योजना-2001 की समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि लगभग 60% नगरे में यह पूरी तरह से ढकी हुई है। इन सभी मामलों में नालियां खुली हुई हैं और कुछ नगरो में संयुक्त प्रणाली है। बरसाती पानी का निपटान पूरी तरह अनियोजित है और यह भूमि, ढलानों, तालाबों आदि मे प्राकृतिक रूप से बहता है।

वर्तमान स्थिति तथा मुद्दे

अध्ययनों से पता चला है कि बरसाती पानी की जल-निकासी के लिए एकीकृत योजना की कमी है, जो स्थानीय है अपितु क्षेत्रीय आधार रखता है जिसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और एन.सी.टी.-दिल्ली उप-क्षेत्रों में आने वाले क्षेत्र है। इस क्षेत्र में अशोधित मल-जल लगातार अधिकांश नालों में बहता है और अंतत: गंगा और यमुना नदियों में जाता है। नालों के आसपास झुग्गी-वासियों द्वारा अतिक्रमण से नाले अवरुद्ध होते हे और उनकी धारण क्षमता घट जाने के कारण पानी ऊपरीय इलाके जलमग्न हो जाते है। ठोस कचरा लगातार गिराने से, उनमे रुकावट आ जाती है। जिला-वार महा-योजनाएं तैयार नहीं की गई है। नालियों की स्थिति का आंकलन करने के लिए नियमित रुप से हाइड्रॉलिक सर्वेक्षण भी नहीं किया जाता है।

नीतियां तथा प्रस्ताव

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में क्षेत्रीय तथा स्थानीय जल-निकासी प्रणाली मे सुधार करने की दृष्टि से निम्नलिखित कार्यनीतियों तथा नीतियों का प्रस्ताव है:

जल-निकासी के प्रति क्षेत्रीय दृष्टिकोण

क्षेत्रीय स्तर पर एकीकृत क्षेत्रीय जल-निकासी योजना और जिला स्तर पर जल-निकासी महा योजना तैयार किया जाना चाहिए। जो राज्य सरकारों द्वारा लघु स्तर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बेसिन / उप-बेसिन के अंतर्गत प्रत्येक प्रमुख जल-निकासी प्रणाली की गंभीरता से जांच करने के बाद करना चाहिए। जिसमें इस क्षेत्र में वर्तमान / भावी विकास तथा आबादी के पैटर्न को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय तथा स्थानीय नालियों की गुणवक्ता में सुधार के लिए प्रस्ताव शामिल किए जाने चाहिए। क्षेत्रीय स्तर पर संबंधित निर्माण कार्यों का एक अभिकरण द्वारा समन्वय किया जाना चाहिए। क्षेत्र जल-निकासी योजना को उस क्षेत्र के महा योजना के एकीकृत भाग के रूप में विचार किया जाना चाहिए तथा इस जल-निकासी योजना में क्षेत्रीय भूमि विकास योजना को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

वर्तमान परिस्थिति मे निम्न मुद्दे उभरकर सामने आए है।

  • ग्रामीण जल-निकासी प्रणाली पांच वर्ष के अंतराल से तीन दिन की वर्षा के पानी को तीन दिन मे निकालने के लिए डिजाइन किया जाना चाहिए। रन आफ की गणना के निए एक उपयुक्त क्षेत्र वितरण कारक अपनाया जाना चाहिए।

  • रन आफ गुणांक की गणना नये क्षेत्रो में संभावित भूमि उपयोग के लिए और पहले ही विकसित क्षेत्रो के लिए मौजूदा भूमि उपयोग पैटर्न के आधार पर मिश्रित भूमि उपयोग पैटर्न वाले क्षेत्रो पर की जानी चाहिए।

  • • जहां भूमि उपयोग नीतियों का उल्लेख न होने के कारण रन आफ गुणांक निकालना संभव नहीं है, वहां समतल से सामान्य ढाल वाले ग्रामीण क्षेत्रो के लिए 0.2 तक अपनाया जा सकता है और अत्यधिक ढाल वाले क्षेत्रो के लिए 0.4 रन आफ गुणांक अपनाया जा सकता है। शहरी क्षेत्रो के लिए, जहां उस क्षेत्र के पर्याप्त विवरण उपलब्ध नहीं है वहां 0.6 तक रन आफ गुणांक अपनाया जा सकता है।
बरसाती पानी नालियों में प्रदूषण रोकना

बरसाती पानी नालियों में मल-जल प्रवाह और खुली नालियों में ठोस कचरे तथा कीचड़ डालने से रोकने के उपाय किए जाने चाहिए। इनका पालन पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अधीन किया जाना चाहिए। जल-निकासी प्रणाली में अनधिकृत विकास / अतिक्रमण / झोपड़-पट्टी बनाने पर रोक लगाई जानी चाहिए।

सिंचाई के लिए पानी

जहां सिंचाई नहर निकलती है, तथा जहां नहर का छोर नालियों में गिरता है अथवा नजदीक के तालाबों में गिरता है, एकीकृत क्षेत्रीय जल-निकासी प्रणाली से सुधार करने के लिए योजना बनाते समय मानसून व चालू-मानसून अवधियों में उनकी क्षमता बढ़ाकर अधिशेष सिंचाई पानी के कुशल निकास के लिए प्रावधान किए जाने चाहिए।

निधि का प्रावधान

सिंचाई नहरों की ही तरह नालियों के उन्नयन तथा नियमित अनुरक्षण के लिए पर्याप्त निधि का प्रावधान किया जाना चाहिए।

जल-निकासी पर और जानकारी के लिए निम्नलिखित दस्तावेज का संदर्भ लेः

क्षेत्रीय योजना दस्तावेज - जल-निकासी
क्षेत्रीय कार्य योजना - जल-निकासी