आपदा प्रबंधन

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन

मानव बस्तियाँ अक्सर प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होती है, जो मानव जीवन पर भारी असर डालती हैं, इमारतों और बुनियादी ढांचे को नष्ट कर देती है और समुदाय के लिए दूरगामी आर्थिक और सामाजिक परिणाम होते है। देश के सामने आने वाली प्राकृति आपदा औसतन 3663 से अधिक लोगों की जान लेती है, 14.2 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र को प्रभावित करती है व सालाना 26.3 लाख घरों को नुकसान पहुंचाती है। पिछले आँकड़ों से पता चलता है कि घरों और इमारतों के ढहने के कारण लगभग 80% मानव जीवन खो गया था।

प्राकृतिक खतरों के कारण क्षेत्र की संवेदनशीलता और जोखिम का आकलन

भारत का संवेदनशीलता एटलस यह दर्शाता है कि रा. रा. क्षे. निम्नलिखित के अंतर्गत आता है:

i) भूकंप के संबंध में उच्च क्षति जोखिम क्षेत्र (एमएसके VIII)

ii) * बहुत अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र बी (वीबी = 50 मी/से) * हवा और चक्रवात के खतरे के संबंध में

iii) बाढ़ संवेदनशील क्षेत्र

उपरोक्त प्राकृतिक और मानव निर्मित खतरों को ध्यान में रखते हुए एनसीआर में क्षेत्रीय विकास/निर्माण की योजना बनाई जानी चाहिए।

दिल्ली और उसके आसपास भूकंप की घटना को निम्नलिखित प्रमुख विवर्तनिक विशेषताओं के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

(क) सोहना फॉल्ट

(खा) अरावली फॉल्ट

(ग) इंडो-गंगा बेसिन में छिपा हुआ मुरादाबाद फॉल्ट

(घ) सोनीपत-दिल्ली-सोहना फॉल्ट

(ड.) अरावली और सोहना फॉल्ट का जंक्शन

(च) दिल्ली-हरिद्वार रिज

भूकंप:

रिक्टर स्केल पर चार से कम तीव्रता के भूकंप एनसीआर में स्थित 14 एपिसेंटर से उत्पन हुई है। इसके अलावा, भू-आकृति विज्ञान अध्ययनों से अनुमान लगाए गए कि कई अन्य समानांतर दोष भी हैं। दिल्ली और आसपास के इलाकों में भूकंप इन दोषों के साथ टेक्टोनिक गतिविधि से संबंधित हैं।

बाढ़:

इसी तरह, यह क्षेत्र बाढ़ प्रवण क्षेत्र में स्थित है और मानसून के दौरान बाढ़ एक नियमित विशेषता है। गंगा और यमुना उपबेसिन में बाढ़ के पिछले इतिहास के अनुसार यू पी में मेरठ, गाजियाबाद और बुलंदशहर, हरियाणा में रोहतक, पानीपत और सोनीपत प्रभावित जिले है।

हवाएं :

जहां तक हवा के खतरे का सवाल है, पूरे क्षेत्र में हवा की गति आईएस 875 (भाग 3) के अनुसार 47 मीटर/सेकंड (169 किमी/घंटा) है, जो कभी-कभी ही एक गति तक पहुँचती है। जिसे आँधी (पवन का तूफान) कहा जाता है। इस क्षेत्र में संरचनाओं को उपरोक्त हवा की गति को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में छप्पर, चादर आदि के मकान और ढलान वाली फूस की छत्तों, टाइलों, ऐसी चादरों और नालीदार जस्ती लोहे (सीजीआई) चादरों वाले घर, जो अच्छी तरह से एकीकृत नहीं है, को नुकसान होगा। आँधी में होने वाली क्षति फिर से स्थानीय प्रकृति की है और इससे क्षेत्र में कोई आपदा नहीं आती है।

अग्नि संकट

रा. रा. क्षे. में स्थित तेजी से बढ़ते शहर जैसे दिल्ली को अग्नि संकटों से खतरा है जो कि निम्नलिखित कारणों से है:

  • भवन उप-नियमों के एक भाग के रूप में अग्नि सुरक्षा मानकों का कार्यान्वयन न किया जाना।
  • अतिक्रमण, अति भीड़-भाड़ और अनियमित वृद्धि से विपत्ति के समय पर अग्नि शामक यंत्रों का गति तथा समय पर सुगम्यता से न पहुँच पाने को प्रभावित करना।
  • गैर-कानूनी और ढीले-ढाले कनेक्शन।
  • बिजली प्रणाली की निम्नस्तरीय तारें लगाना और उन पर अधिक भार डालना।
  • उच्च ज्वलनशील पदार्थों से बनी झुग्गी-झोपड़ियां जिनमे से कुछ अत्यंत जहरीले पढ़ार्थ जैसे प्लास्टिक, पोलिथीन, शीट, बांस, कमजोर लकड़ी आदि से बने है जहाँ अग्निशामक गाड़ियों के पहुँचने की सुविधा नहीं है।
  • गैर-कानूनी भंडारण और खतरनाक व्यावसायिक गतिविधियाँ।
  • अपर्याप्त पम्पिंग सुविधाओं के कारण आग बुझाने और नियंत्रित करने में समस्या होना।
  • स्थानीय निकायों में विशेष अग्निसमन उपकरणों की अपर्याप्त उपलब्धता विशेषत: बहुमंज़िली इमारतों में जहाँ इन्हे लगाया जाना पूर्वापेक्षा है।
  • एनसीटी दिल्ली-उप-क्षेत्र अग्नि संकट से बहुत अधिक नुकसान की आशंका वाला क्षेत्र है। क्योंकि वहाँ बहुमंज़िली इमारतें, बहुमुखी गतिविधियां, जनसंख्या घनत्व व बढ़ता अधिवास है।

अन्य शहरों जैसे गाज़ियाबाद, गुड़गाँव, नोएडा, अलवर, फ़रीदाबाद आदि भी अग्निसंकट से नुकसान की आशंका वाले क्षेत्र है। क्योंकि यहाँ भी तेजी से औद्योगीकरण और बहु-मंजिली इमारतों का विकास हो रहा है।

इस क्षेत्र में और तेजी से बढ़ रहे शहरों के विभिन्न क्षेत्रों में आग लगने की संभावनाओं का व्यापक अध्ययन किया जाना चाहिए और रा. रा. क्षे. भावी योजनायों में पर्याप्त सुरक्षा का प्रावधान किया जाना चाहिए। इसके साथ ही विधुत तारों की गुणवत्ता, वायरिंग और वितरण प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए।

15.3 नीतियां एवं प्रस्ताव

आपदा प्रबंधन के लिए निम्नलिखित नीतियां और कार्यनीतियां प्रस्तावित हैं:

i) आपदा प्रबंधन एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-मुखी विषय है, जिसमें कई समूह सम्मिलित है। अतएव, सभी दलों (सरकार/गैर-सरकारी संस्थान/समुदाय) को साथ काम करना चाहिए। आपदा तैयारी, शमन और आपदा प्रत्युत्तर के लिए विभिन्न स्तरों पर उपयुक्त योजना बनाने की जरूरत है। उप-क्षेत्रीय स्तर पर आपदा प्रबंधन समिति (डी. एम. सी.) और जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंधन समिति (डी. डी. एम. सी.) बनायी जानी चाहिए। साथ ही, समितियों की भूमिकाओं और उत्तरदायित्वों का विवरण उप-क्षेत्रीय योजनाओं में होना चाहिए।

यह भी सुझाव दिया जाता है कि आपदा-उपरांत प्रबंधन योजना भी उप-क्षेत्रीय योजना का एक भाग होना चाहिए। इस उद्देश्य का सहभागी राज्यों और एन.सी.टी.-दिल्ली द्वारा अनुपालन करने के लिए सार और दिशा-निर्देशों का स्पष्टतः परिभाषित रूप से होना चाहिए।

ii) जहां बहुत सारी भूमिकाएं निभाने वाले लोग हों वहां क्षमता निर्माण के लिए मानव संसाधन विकास एक महत्वपूर्ण पहलू है। इसके लिए, विभिन्न संगठनों के लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम अनिवार्य है । कार्यशाला, सम्मेलन, अनुसंधान गतिविधियां, इत्यादि समय-समय पर आयोजित किए जाने चाहिए।

लोगों को सुग्राही बनाने, कार्मिकों के प्रशिक्षण और न्यूनीकरण उपायों के लिए क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थानों पर आपदा प्रबन्धन केन्द्रों की स्थापना किये जाने चाहिए।

iii) सूचना के संग्रहण, भण्डारण, पुनःप्राप्ति और प्रचार के लिए आधुनिकी प्रौद्योगिकी अर्थात्‌ जी.आई.एस., जी.पी.एस., दूर संवेदी, कंप्यूटर मॉडलिगं और विशेषज्ञ प्रणाली, इलेक्ट्रानिक सूचना और प्रबंधन प्रणाली इत्यादि को उपयोग किए जाने के प्रयास की जरूरत है। भागीदारी राज्यों में नियंत्रण कक्षों को आधुनिक और अधिक प्रभावी तथा सामुदाय अनुकूल बनाने की जरूरत है।

संकटों की उत्पत्ति, भवनों और अवसंरचना को हुई क्षति तथा विभिन्न सरकारी विभागों, सार्वजानिक और निजी उद्यमों, कृषि व बागवानी तथा क्षेत्र में संबंधित अवसंरचना को हुए आर्थिक नुकसानों, के बारे में विस्तृत आंकड़े एकत्रित किए जाने चाहिए। जनता में जागरुकता लाने के लिए इन सूचनाओं का व्यापक रूप से प्रचार किया जाना चाहिए। जिला प्रशासन को भविष्य में आने वाली सभी संभव्य घटनाओं के प्रति तैयार रहना चाहिए।

दूरवर्ती जगहों तक स्थानीय भाषाओं में चेतावनियों को तेजी से प्रचारित करने की जरूरत के लिए आपदा चेतावनी प्रणाली के जरिये दूरसंचार की व्यवस्था होनी चाहिए। राज्यों और जिला स्तरीय मुख्यालयों में आपदा चेतावनी यंत्रों की व्यवस्था होनी चाहिए।

iv) प्राकृतिक संकट की दृष्टि से, सुरक्षा पहलू को शामिल करने के लिए वर्तमान भवन उप-नियमों में संशोधन हेतु पूर्ण तकनीकी-विधिक प्रणाली प्रस्तावित की जानी चाहिए।

भागीदारी राज्यों के संबंधित शहरी और ग्रामीण योजना अधिनियमों, विकास और निगम अधिनियमों की सावधानीपूर्वक जांच कर और प्राकृतिक संकटों से संबधित सुरक्षा पहलू के आवश्यक प्रावधानों को सम्मिलित करने के लिए संशोधन किया जाना चाहिए । उप-क्षेत्रों में लागू विकास नियंत्रण नियमों तथा भवन उप-नियमों का संघटक राज्यों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया जाना चाहिए जिसमें प्राकृतिक संकटों से संबंधित सुरक्षा पहलूओं और अग्नि सुरक्षा की व्यवस्था हो। सभी बहु-मंजिली और उच्च-खतरे वाली इमारतों [जैसा भूकंप मैनुअल और राष्ट्रीय भवन-निर्माण कोड (एन. बी. सी.) में परिभाषित] को निश्चित तीव्रता के भूकंप सहने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए बनाया जाना चाहिए।

सभी राज्यों को स्थानीय जरूरतों और भू-जलवायु दशाओं के अनुरूप राहत मैनुअल और अकाल तैयारी दिशा-निर्देशों की समीक्षा ली जानी चाहिए।

भूमि उपयोग जोनिंग, संकट प्रतिरोधी भवन निर्माण के पहलुओं को सम्मलित करते हुए उचित दिशा-निर्देश विकसित किए जाने चाहिए। निर्माण केन्द्रों के जरिये बेहतर प्रौद्योगिकी के स्थानान्तरण को प्रभावी बनाया जा सकता है ।

v) भागीदारी राज्यों को अपने उप-क्षेत्रों में प्राकृतिक संकटों की वजह से नुकसान आशंकित वाले क्षेत्र और खतरा आकलन करना चाहिए और अपने उप-क्षेत्रीय योजनायों के एक भाग के रूप में बचाव सहित सुरक्षा तैयारी योजना को बनाना चाहिए। सार्वजनिक भवनों (जैसे अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थाओं, विद्युत स्टेशनों, अवसंरचनाओं, धरोहर स्मारकों, जीवन रक्षक संरचनाओं और जहां ज्यादा भीड़ की संभावना हो) को निर्दिष्ट तीव्रता वाले भूकंप सहने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए बनाने में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भूकंप मैनुअल और एन.बी.सी. के अनुसार पहचान किये गए नुकसान आशंकित ढांचों को सुदृढ़ीकरण और रेट्रोफिटिंग के लिए राज्य सरकारों द्वारा उचित कार्य लिए जाने चाहिए। नवाचारी निर्माण प्रौधोगिकियों का अध्ययन किया जाना चाहिए और उनको कार्यान्वित किया जाना चाहिए।

क्षेत्र की भूगर्भीय आकृतियों को ध्यान में रखते हुए, यह देखा गया है हालांकि, चट्‌टानी रिज़ इस क्षेत्र का बहुत छोटा भाग है (जैसा कि मानचित्र 15.1 में सूचित है), फिर भी ये जल क्षेत्र को बांटने का काम निभाते हुए आस-पास के जलभृत की प्रतिपूर्ति करते हैं अतः, इनका परिरक्षण किया जाना चाहिए।

vi) भूकंपः भागीदारी राज्यों द्वारा अपने उप-क्षेत्रों के लिए पहले से उपलब्ध आंकड़ों/सूचकांकों पर आधारित 1:1,00,000 और 1:1,50,000 के माप पर एक भूकंपीय सूक्ष्म-जोनेशन (माइक्रो-जोनेशन) तैयार करना चाहिए। उच्च वृद्धि वाले चुने गए क्षेत्रों/शहरों के लिए भूकंपीय सूक्ष्म-जोनेशन प्राथमिकता पर लिया जाना चाहिए।

रोहतक जैसे कुछ ऐसे भी क्षेत्र है, जो स्थलाकृतिक के रूप से निचले और बाढ़ प्रभावित है, इसलिए इन क्षेत्रों में कोई भी विकास यह ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए कि यह भूकंपीय तीव्रता जोन भी है।

vii) बाढ़: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भिन्न क्षेत्र में, जहां 5,10, 50 और 100 वर्षों के बाद बाढ़ संभाव्य है, क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय स्तरों पर भूमि उपयोग जोनिंग मानचित्र पर पहचान की जानी चाहिए । भागीदारी राज्यों को संबंधित उप-क्षेत्रों के लिए 0.3 से 0.5 मीटर के कंटूर अन्तराल पर 1:15,000 के माप पर विस्तृत कंटूर मानचित्र तैयार करना चाहिए और उन क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए जो बाढ़ प्रवृत है।

viii) तेज हवाएं: यह भी देखा गया है कि मरुस्थल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के दक्षिणी भाग में पूर्वी दिशा की ओर बढ़ रहा है। क्षेत्र के इस भाग में मरुस्थल को विस्तार रोकने के लिए उचित उपाय अपनाए जाने चाहिए।

ix) अअग्नि: बढ़ रहे नगरों का व्यापक ख़तरा मूल्यांकन प्राथमिकता पर किया जाना चाहिए जिससे नगरों में आग नुकसान आशंकित वाले क्षेत्रों की पहचान की जा सके और उपकरणों तथा कार्मिकों के उपलब्ध आकड़ों को संग्रहित कर और समय-समय पर इनका अद्यतन भी किया जाना चाहिए। अग्नि संकंटों की दृष्टि से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शहरों और नगरों में क्षेत्रों को उच्च नुकसान की आशंका, मध्य नुकसान की आशंका और निम्न नुकसान की आशंका वाले क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाना चाहिए । शहरों/नगरों के मूल चरित्र के अनुसार भिन्न क्षेत्रों के लिए अग्नि सुरक्षा उपायों को तैयार किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय भवन-निर्माण कोड IV और अन्य संबंधित भारतीय मानकों में सुरक्षा विनियमन दिए गए हैं। भागीदारी राज्यों द्वारा विकास नियंत्रण नियम/अग्नि संकटों को उपशमन करने के लिए उप-नियम बनाने के लिए इन्हें मार्गदर्शक के रूप में पालन किया जाना चाहिए। अग्निशामन विभागों/ प्राधिकरणों को प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की योजना बनाने के लिए सम्मिलित किया जाना चाहिए ताकि भिन्न भागीदारी राज्यों के बीच किये जाने वाले प्रयासों में समन्वयन हो सके।

आपदा प्रबंधन पर अधिक जानकारी हेतु नीचे उल्लेखित दस्तावेजों का संदर्भ लें।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आपदा प्रबंधन

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